सफेद मूसली की खेती
सफेद मूसली का वैज्ञानिक नाम क्लोराफाइटम बोरिविलिएनम है। इसकी मांग समूचे विश्व में जितनी है उसका एक चौथाई भी उत्पादन नहीं हो पा रहा है। इसका पौध ज्यादा लम्बा नहीं होता। इसकी जडों का कई तरह की दवाओं में प्रयोग किया जाता है। यदि पहले ही बाजार की मांग का पता करते हुए खरीददारों से संपर्क कर लिया जाए तो इसकी खेती बेहद लाभकारी हो सकती है। इसकी फसल तैयार होने में छह से आठ माह लेती है। जिस खेत में सफेद मूसली की खेती करनी है उसमें दूसरी फसल केवल कम समय में तैयार होने वाली सब्जी की ही हो सकती है। यदि बाजार में डिमांड प्रॉपर हो तो इसकी खेती से दो से तीन लाख रुपए प्रति एकड तक लाभ के दावे लोग करते रहे हैं। विदित हो कि यह औषधीय खेती है। इसकी खेती करने से पहले बाजार का पता और बेचने की पक्की गारंटी जरूर कर लें। अन्यथा सामान्यतौर पर बाजार में बेचना आसान नहीं हेाता। यह एक से डेढ हजार रुपए प्रति किलोग्राम तक बिक जाती है। इसकी कई प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें क्लोराफाइटम बोरिविलएनम, क्लोरोफाइटम ट्युबरोजम, क्लोरोफाइटम अरुंडीनेशियम, क्लोरोफाइटम एंटेनुएटम, क्लोरोफाइटम ब्रीविस्केपम प्रमुख हैं। इसकी खेती के लिए यूपी, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, ओडीशा, बिहार आदि पर्याप्त बरसात वाले राज्यों को उपयुक्त माना जाता है।कंद वाली फसल

उर्वरक
मूसली की खेती के लिए खेत में जून से पहले सनई, ढेंचा जैसी फसल को लगाकर खेत में जोत देेते हैं। इससे जमीन को हरी खाद मिल जाती है। इसके अलावा सडी हुई गोबर की खाद दो से छह ट्रोली प्रति एकड़ की दर से डालनी चाहिए।औषधीय पौधों की खेती में रासायनिक खादों का प्रयोग नहीं करना चाहिए अन्यथा उपज की गुणवत्ता प्रभावित होती है। कंपनियां रासायनिक खादों वाली फसल को केवल बाजार में मांग ज्यादा होने तथा माल न मिल पाने की दशा में ही खरीदती हैं। इसकी खेती के लिए खेत में तीन फीट चैड़ा व छह इंच से एक फीट उूूंचा बैड बनाते हैं ताकि फसल में पानी न भरे और नालियों से नमी मिलती रहे। बीज के लिए इसके कंदों का ही उपयोग होता है। कंदों के साथ पौधे का कुछ हिस्सा होना जरूरी है। बोने से पूर्व कंदों को ट्राइकोडर्मा या बाबस्टीन में से किसी एक के घोल में उपचारित करके ही बोना चाहिए। जून-जुलाई में बोई गई फसल से अक्टूबर नवंबर में पत्ते झड़ने लगते हैं लेकिन फसल को पत्ते गिरने के एक से दो माह बाद ही खोदना चाहिए। कंदों के सफेद से भूरे रंग का होने के बाद ही खुदाई करनी चाहिए। कंदों को जनवरी माह में खोदने के बाद इनकी छिलाई की जाती है। बीज के लिए रखने वाले कंदों को बिना छिलाई के रखा जाता हे। कंदों को छिलाई के बाद दो से तीन दिन सुखाया जाता है। इसके बाद इन्हें पैक करके रख लिया जाता है।खेती के लाभ का गणित

14-Dec-2020